🌷🌷 शिव शम्भु स्तोत्रम् ॥🌷🌷
( हिन्दी अर्थ सहित)
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ॐ नमः शिवाय शान्ताय सच्चिदानन्दरूपिणे।
जगत्कारणरूपाय कालकालाय ते नमः॥१
भावार्थ: शान्त, सच्चिदानन्दस्वरूप, जगत् के कारण, काल के भी काल शिव को नमस्कार है।
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त्रिनेत्रं त्रिशिरः शान्तं जटाजूटं शशांकभृत्।
सर्वदोषहरं देवं नमामि शिवशेखरम्॥२
भावार्थ: तीन नेत्रों और तीन शिरों वाले, जटा-जूटधारी, चन्द्रधारण करने वाले, सभी दोषों का नाश करने वाले शिव को नमस्कार।
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नागेन्द्रहारं शूलं च पिनाकं च करे स्थितम्।
वन्दे शम्भुं सदानन्दं सर्वत्रैक्यमयं शिवम्॥३
भावार्थ: नागराज का हार, हाथ में त्रिशूल और पिनाक धनुष धारण करने वाले, शम्भु सदानन्द, एकत्वस्वरूप शिव को वन्दन।
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कालाग्निरुद्ररूपं च मृत्युंजयमहेश्वरम्।
प्रलयं हरणं देवं पशुपतिं नमो नमः॥ ४
भावार्थ: कालाग्निरुद्रस्वरूप, मृत्युंजय, प्रलय करने वाले, पशुपति महेश्वर को बारंबार नमस्कार।
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व्योमकेशं वृषारूढं भस्मालङ्कृतविग्रहम्।
भक्तानुग्रहदातारं शंकरं प्रणमाम्यहम्॥५
भावार्थ: आकाश जैसे केशों वाले, वृषभ पर आरूढ़, भस्म से विभूषित शरीर वाले भक्तवत्सल शंकर को प्रणाम।
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दिगम्बरं महादेवं मुक्तकेशीं त्रिलोचनम्।
गङ्गाधरं सोमधरं नीलकण्ठं नमाम्यहम्॥६
भावार्थ: दिगम्बर, मुक्तकेशी, त्रिलोचन, गङ्गाधर, सोम और नीलकण्ठ महादेव को नमस्कार।
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दक्षयज्ञविनाशं च सतीपतिं उमापतिम्।
भवेशं भयनाशं च सुरेशं शरणं मम॥ ७
भावार्थ: दक्षयज्ञविनाशक, सतीपति, उमापति, भवेश, भयनाशक, देवों के स्वामी मेरे शरण हैं।
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वसिष्ठविश्वामित्राद्यैः पूजितं योगिसत्तमैः।
गायत्र्याख्यमहामन्त्रगूढं देवं नमाम्यहम्॥ ८
भावार्थ: वसिष्ठ, विश्वामित्र जैसे योगियों द्वारा पूजित, गायत्री मन्त्र में गूढ़ उस देव को नमस्कार।
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शिवाय शुद्धरूपाय चन्द्रशेखरमूर्तये।
प्रणतः क्लेशनाशाय नन्दिशायप्रिये नमः॥९
भावार्थ: शुद्धस्वरूप, चन्द्रशेखर शिव, जो नन्दि के प्रिय हैं, क्लेशों का नाश करने वाले हैं — उन्हें नमस्कार।
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गिरिशाय गिरावासाय गिरीशाय नमो नमः।
अग्न्यर्कचन्द्रनेत्राय नमः पावनमूर्तये॥१०
भावार्थ: पर्वतों पर निवास करने वाले गिरिश शिव को, जिनके नेत्र अग्नि, सूर्य और चन्द्र हैं — पावन मूर्ति को नमस्कार।
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त्रयीतनुस्वरूपाय ब्रह्मविष्णुशिवात्मने।
सृज्यस्थितिलयानां च हेतवे जगतां नमः॥११
भावार्थ: वे जो त्रयी (ऋग्, यजुः, साम) के स्वरूप हैं, ब्रह्मा, विष्णु और शिव के आत्मस्वरूप हैं — सृष्टि, स्थिति और लय के हेतु हैं — उन्हें नमस्कार।
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मणिकर्णिकायास्तीरे निवासं कुर्वते विभोः।
तं कालमृत्युनाशं च कालेशं प्रणमाम्यहम्॥१२
भावार्थ: जो मणिकर्णिका तीर्थ के तट पर निवास करते हैं, जो काल और मृत्यु का नाश करने वाले हैं — उन कालेश्वर को मैं प्रणाम करता हूँ।
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शमशानप्रियभूतात्मन् भस्मलेपनभूषण।
वीतरागमहावीर्य शिव ते शरणं मम॥१३
भावार्थ: शमशानप्रिय, भूतात्मा, भस्मलेपित, वीतराग, महान पराक्रमी शिव — आप ही मेरी शरण हैं।
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लिङ्गरूपधरं देवं शक्तितत्त्वयुतं विभुम्।
शिवशक्तिसमायुक्तं नमामि परमं शिवम्॥१४
भावार्थ: लिङ्गस्वरूप, शक्तितत्त्व से युक्त, शिवशक्ति से संयुक्त उस परम शिव को मैं नमस्कार करता हूँ।
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अनादिनिधनं शम्भुं ब्रह्ममायातिगं हरम्।
निराकारं च चिन्मात्रं तं नमामि सदाशिवम्॥१५
भावार्थ: अनादि, अनन्त, ब्रह्म और माया से परे, निराकार, शुद्ध चैतन्यरूप सदाशिव को मैं प्रणाम करता हूँ।
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जटाजूटसमा गङ्गा या वहत्यधिदेहके।
सांनिध्यं करुणासिन्धो यस्तस्य प्रणतोऽस्म्यहम्॥१६
भावार्थ: जिनकी जटाओं में गंगा प्रवाहित होती है, करुणा के सागर उन शिव को मैं प्रणाम करता हूँ।
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वामे भवानी सहिता दक्षिणे च गणाधिपः।
मध्ये चन्दनगन्धानां रासेशं प्रणमाम्यहम्॥१७
भावार्थ: जिनके वाम भाग में भवानी और दक्षिण में गणपति हैं, और जो सुगन्धित चन्दन से शोभित हैं — उन रासेश्वर को प्रणाम।
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विभूतिधारणं शम्भोः शुद्धज्ञानात्मकं हरम्।
योगिनां हृदि भाव्यं च योगेशं प्रणमाम्यहम्॥१८
भावार्थ: विभूति धारण करने वाले, शुद्ध ज्ञानस्वरूप, योगियों के हृदय में स्थित योगेश्वर शिव को प्रणाम।
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रुद्रं पाशुपतं देवं नीलकण्ठं त्रिलोचनम्।
लोकत्रयगुरुं शम्भुं नमामि भवभीषणम्॥१९
भावार्थ: रुद्र, पाशुपत, नीलकण्ठ, त्रिलोचन, लोकों के गुरु शम्भु और भव का भय हरने वाले शिव को नमस्कार।
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करालभालपट्टाभं कपालमालविभूषितम्।
त्रिपुरान्तकमीशानं नमामि भयनाशनम्॥२०
भावार्थ: जिनका भाल भयानक तेज से युक्त है, जो कपालों की माला धारण करते हैं, त्रिपुर का संहार करने वाले ईशान, भय का नाश करने वाले शिव को प्रणाम।
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गङ्गाजलं शरीरे यः धारयत्यद्भुतं शिवः।
स एव भवरोगाणां हर्ता भवति निश्चितम्॥२१
भावार्थ: जो अपने शरीर पर गङ्गाजल धारण करते हैं, वही शिव संसार के समस्त रोगों के निश्चित नाशक हैं।
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शिवे रुष्टे न कश्चन त्राता भवसङ्कटे।
शिवे तुष्टे किमन्येन तस्मात् शम्भुं भजाम्यहम्॥२२
भावार्थ: यदि शिव रुष्ट हों तो कोई भी संसार से नहीं बचा सकता, और यदि वे प्रसन्न हों तो अन्य किसी की आवश्यकता नहीं — इसलिए मैं शम्भु की भक्ति करता हूँ।
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भूतनाथं महाकायं विश्वनाथं च शङ्करम्।
कर्पूरगौरं ध्यायामि नागेन्द्रकृतकुण्डलम्॥२३
भावार्थ: भूतनाथ, विशालकाय, विश्वनाथ शंकर, कर्पूर के समान गौरवर्ण के, नागराज के कुण्डल धारण करने वाले शिव का मैं ध्यान करता हूँ।
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दयानिधिं सुराधारं सिद्धगन्धर्वसेवितम्।
कैलासशिखरावासं श्रीशिवं प्रणमाम्यहम्॥२४
भावार्थ: करुणा के सागर, देवों के आधार, सिद्ध-गन्धर्वों द्वारा पूजित, कैलास शिखर पर निवास करने वाले श्री शिव को मैं प्रणाम करता हूँ।
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शिवो मे रक्षकः साक्षात् शिवो मे दायकः सुखम्।
शिवो मे शरणं नित्यं शिवान्नान्यं समाश्रये॥२५
भावार्थ: मेरे रक्षक शिव ही हैं, सुखदाता भी शिव हैं, मेरी नित्य शरण शिव ही हैं — मैं शिव के अतिरिक्त किसी का आश्रय नहीं लेता।
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शिवो भूत्वा च संसारं पालयत्याखिलं जगत्।
शिवे रमेण संसारो लीनो यान्ति परं पदम्॥२६
भावार्थ: शिव ही बनकर संसार का पालन करते हैं, शिव के साथ रमण करने से जीव संसार से मुक्त होकर परमपद को प्राप्त करता है।
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अशेषदोषसंहर्ता कृपया परिपूरितः।
योगिनां च गुरुस्त्वं हि शंभो शरणमस्तु मे॥२७
भावार्थ: जो समस्त दोषों का नाश करने वाले, कृपा से परिपूर्ण हैं, योगियों के गुरु हैं — हे शम्भो! आप मेरी शरण हों।
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नमः शिवाय शान्ताय नमस्ते करुणाकर।
नमस्ते भक्तवत्सल्य नमस्ते भक्तपालक॥२८
भावार्थ: शान्त, करुणासागर, भक्तवत्सल, भक्तों के रक्षक शिव को बारंबार नमस्कार।
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सर्वज्ञं सर्वरूपं च सर्वाद्यं सर्वकारणम्।
नमामीशं महादेवं सच्चिदानन्दरूपिणम्॥२९
भावार्थ: सर्वज्ञ, सर्वरूप, सबका आदि और कारण, सच्चिदानन्दस्वरूप महादेव ईश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।
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अचिन्त्यरूपिणं देवं अज्ञानतमसापहम्।
ध्यानगम्यं मुनिध्येयं नमामि परमं शिवम्॥३०
भावार्थ: जिनका रूप अचिन्त्य है, जो अज्ञानरूपी अंधकार को नष्ट करते हैं, ध्यानयोग से प्राप्त होने योग्य हैं — उन परम शिव को नमस्कार।
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सर्पकुण्डलसंयुक्तं भस्माङ्गरमणीयकम्।
कालत्रयविनिर्मुक्तं शिवं वन्दे निरञ्जनम्॥३१
भावार्थ: सर्प कुण्डलों से युक्त, अंगों पर भस्म रमाये हुए, तीनों कालों से परे, निष्कलंक शिव को मैं वन्दन करता हूँ।
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भस्मोदूलितसर्वाङ्गं भूतभूतप्रपञ्चकम्।
कालान्तकमकालं च नमामि त्रिगुणात्मकम्॥३२
भावार्थ: जिनका समस्त शरीर भस्म से अलंकृत है, जो समस्त भूतों का आधार हैं, जो काल का भी अंत करने वाले हैं — उन त्रिगुणस्वरूप शिव को नमस्कार।
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नमो हेमाङ्गदच्छन्न वामाङ्गार्धप्रियेश्वर।
त्रिपुरान्तक कृपालो नमस्ते नीलकण्ठक॥३३
भावार्थ: हे स्वर्णाभूषणों से विभूषित, वामांग में अर्धनारी नायिका प्रिय वाले ईश्वर, त्रिपुरांतक, कृपालु, नीलकण्ठ — आपको नमस्कार।
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योगिभिः ध्यानगम्यं च तपसा निर्मलं शिवम्।
भजामि हृदयेनैव त्रैलोक्यैकगुरुं हरम्॥३४
भावार्थ: योगियों के ध्यानगम्य, तप से निर्मल, त्रैलोक्य के एकमात्र गुरु हर शिव को मैं हृदय से भजता हूँ।
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श्रीकण्ठं कमलापत्यप्रीतिं करुणामयम्।
सर्वदुःखनिवृत्त्यर्थं वन्दे भूतमहेश्वरम्॥३५
भावार्थ: लक्ष्मीपुत्र विष्णु को प्रिय, करुणामय, समस्त दुःखों के निवारण हेतु पूज्य, भूतमहेश्वर को मैं वन्दन करता हूँ।
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प्रणवस्वरूपं शुद्धं नादबिन्दुसमन्वितम्।
ऋषिभिर्मुनिभिः सेव्यं शाश्वतं वन्दे शंकरम्॥३६
भावार्थ: प्रणव (ॐ) स्वरूप, शुद्ध, नाद-बिन्दु से युक्त, ऋषियों-मुनियों द्वारा पूज्य, शाश्वत शंकर को मैं वन्दन करता हूँ।
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शिवो भूत्वा सदा रक्षेत् भक्तानां च मनोव्रतम्।
संसारदाहनाशाय नमः शम्भो दयामय॥३७
भावार्थ: शिव सदा अपने भक्तों के संकल्पों की रक्षा करें। संसार रूपी दाह का नाश करने वाले करुणामय शम्भो को नमस्कार।
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कैलासशिखराधीशं गङ्गाधरमनामयम्।
अरण्यवासनं देवं नमामि मुक्तिदायकम्॥३८
भावार्थ: कैलास शिखर के अधिपति, गङ्गाधर, रोगरहित, वनवास करने वाले मुक्तिदायक देव को मैं नमस्कार करता हूँ।
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विवेकज्ञानविज्ञानं शिवानुग्रहसंभवम्।
शिवपूजनमात्रेण तत्सर्वं लभ्यते ध्रुवम्॥३९
भावार्थ: विवेक, ज्ञान और विज्ञान — ये सब शिव की कृपा से ही प्राप्त होते हैं; केवल शिवपूजन से यह सब निश्चितरूप से प्राप्त हो सकता है।
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शिवध्यानपरं नित्यं यः पापं च न पश्यति।
तं लोकपावनं देवं नमामि हृदि संस्थितम्॥४०
भावार्थ: जो शिव का नित्य ध्यान करता है, वह पापों को नहीं देखता; वह स्वयं लोकों को पावन करने वाला देव है — ऐसे हृदयस्थ शिव को नमस्कार।
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महादेवं महायोगं महापापनिवारणम्।
महातेजोमयं देवं नमामि शिवमीश्वरम्॥४१
भावार्थ: जो महादेव, महान योगी, महापापों के निवारक, महान तेज से युक्त हैं — उन शिव ईश्वर को मैं प्रणाम करता हूँ।
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प्रभुं प्रसन्नवदनं सौम्यं शान्तस्वरूपिणम्।
विश्वाधारं महेशं च नमामि भक्तवत्सलम्॥४२
भावार्थ: प्रसन्न मुख वाले, सौम्य, शान्तस्वरूप, सम्पूर्ण सृष्टि के आधार, भक्तवत्सल महेश्वर को मैं नमस्कार करता हूँ।
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नीलकण्ठं विशालाक्षं शीतांशुकृतशेखरम्।
शिवं शाश्वतमव्यक्तं निर्गुणं प्रणमाम्यहम्॥४३
भावार्थ: नीलकण्ठ, विशाल नेत्रों वाले, चन्द्र को शिखा पर धारण करने वाले, शाश्वत, अव्यक्त, निर्गुण शिव को मैं प्रणाम करता हूँ।
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एको देवो महादेवः सर्वव्यापी निरामयः।
एको रुद्रो द्वितीयो नास्ति तस्मै श्रीशिवाय नमः॥४४
भावार्थ: एकमात्र देव महादेव ही हैं, जो सर्वत्र व्यापी, रोगरहित हैं; रुद्र के समान दूसरा कोई नहीं — ऐसे श्री शिव को नमस्कार।
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शिवः सर्वस्य शासनं शिवः सर्वस्य कारणम्।
शिवः संसारबीजस्य नाशको भवभीषणः॥४५
भावार्थ: शिव ही सबके शासक, शिव ही सबके कारण हैं; शिव ही संसार रूपी बीज का नाश करने वाले भव-भय का नाशक हैं।
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शूलहस्तं कृपावृष्टिं त्रिपुरासुर विनाशकम्।
भक्तवत्सलमव्यक्तं नमामि शिवमव्ययम्॥४६
भावार्थ: हाथ में शूल धारण करने वाले, करुणा की वर्षा करने वाले, त्रिपुरासुर विनाशक, भक्तों के प्रिय, अव्यक्त शिव को प्रणाम।
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दीनबन्धुं कृपालुं च कृपया लोकपालकम्।
जटाजूटधरं देवं नमामि हृदि भावितम्॥४७
भावार्थ: जो दीनों के बन्धु, कृपालु और कृपा से लोकों की रक्षा करते हैं, जटाजूट धारण करने वाले देव हैं — उन हृदयस्थ शिव को नमस्कार।
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नमः शिवाय शम्भवे शङ्कराय महात्मने।
नमो हराय नित्याय गिरिशाय नमो नमः॥४८
भावार्थ: शिव, शम्भु, शंकर, महात्मा, हर, नित्य, गिरिश — इन सभी नामों से पूज्य उस प्रभु को नमस्कार।
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वेदान्तवेद्यं यं देवं ज्ञानस्वरूपमक्षरम्।
शिवं सच्चिदरूपं च भजेऽहं भक्तवत्सलम्॥४९
भावार्थ: जो देव वेदान्त से जाने जाते हैं, जो ज्ञानस्वरूप, अक्षर (अविनाशी), सच्चिदानन्दस्वरूप और भक्तवत्सल हैं — ऐसे शिव की मैं भक्ति करता हूँ।
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शिवस्तवं पठेद्यस्तु श्रद्धया पवित्रभावतः।
स मुक्तिं लभते नूनं शिवलोके महीयते॥५०
भावार्थ: जो श्रद्धा और पवित्र भाव से इस शिव स्तोत्र का पाठ करता है, वह निश्चित ही मुक्ति पाता है और शिवलोक में प्रतिष्ठित होता है।
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स्तोत्रराजमिदं दिव्यं शिवाय भक्तिवर्धनम्।
सर्वसौभाग्यदं नॄणां धनधान्ययुतं स्मृतम्॥५१
भावार्थ: यह दिव्य स्तोत्रराज शिवभक्ति को बढ़ाने वाला, सभी सौभाग्य देने वाला, धन और धान्य से युक्त करने वाला माना गया है।
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ॐ नम: शिवाय 🕉️ |
हे शिव ! हे शंकर ! हे महादेव ! हे शम्भो ❤
कोटि - कोटि प्रणाम! हर - हर - महादेव 🙏
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स्रोत सामाग्री : ONLINE संस्कृत शिक्षण
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