२१०. गुरु स्तोत्रम् - Guru Stotram

गुरु स्तोत्रम् - Guru Stotram   

श्रीगणेशाय नम: 
                          📝 वसन्त राज अधिकारी                                                    घोराही उपमहानगरपालिका, दाङ                                             @ कीर्तिपुर, काठमाण्डौं, नेपाल                        

अखण्डमण्डलाकारं व्याप्तं येन चराचरम् ।

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्रीगुरवे नम: ।।१।।

अज्ञानातिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जनशलाकया ।

चक्षुरुन्मिलितं येन तस्मै श्री गुरवे नम: ।।२।।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुर्देवो महेश्वर : 

गुरुरेव परं ब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नम: ।।३।।

स्थावरं जङ्गमं व्याप्तं यत्किञ्चित्सचराचरम् ।

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नम: ।।४।।

चिन्मयं व्यापी यत्सर्वं त्रैलोक्यं सचराचरम् ।

तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नम: ।।५।।

सर्वश्रुति शिरोरत्न विराजित पदाम्बुज: ।

वेदान्ताम्बुजसुर्यो यस्तस्मै श्री गुरवे नम: ।।६।।

चैतन्य शाश्वत: शान्तो व्योमातीतो निरञ्जन: ।

बिन्दुनादकलातीतस्तस्मै श्री गुरवे नम: ।।७।।

ज्ञानशक्ति समारुढ: तत्वमालाविभुषित: ।

भुक्तिमुक्तिप्रदाता च तस्मै श्री गुरवे नम: ।।८।।

अनेकजन्मसम्प्राप्तकर्मबन्धविधाहिने ।

आत्मज्ञान प्रदानेन तस्मै श्री गुरवे नम: ।।९।।

शोषणं भवसिन्धोश्च ज्ञापनं सारसम्पद: ।

गुरो: पादोदकं सम्यक तस्मै श्री गुरवे नम: ।।१०।।

नगुरोरधिकं तत्त्वं नगुरोरधिकं तप: ।

तत्वज्ञानात् परं नास्ति तस्मै श्रीगुरवे नम: ।।११।।

मन्नाथ: श्रीजगन्नाथ: मद्गुरु: श्री जगत्गुरु: ।

मदात्मासर्वभुतात्मा तस्मै श्री गुरवे नम: ।।१२।।

गुरुरादिरनादिश्च गुरु: परमदैवतम् ।

गुरो: परतरं नास्ति तस्मै श्री गुरवे नम: ।।१३।।

ब्रह्मानन्दं परमसुखदं केवलं ज्ञानमुर्ति 

द्वन्द्वातीतं गगनसदृशं तत्वमस्यादिलक्षम् ।

एकं नित्यं विमलमचलं सर्वधीसाक्षिभुतम् 

भावातीतं त्रिगुणरहितं सद्गुरुं तं नमामी ।।१४।।

त्वमेव माता च पिता त्वमेव 

त्वमेव बन्धुश्च सखा त्वमेव ।

त्वमेव विद्या द्रविणं त्वमेव 

त्वमेव सर्वं मम देवदेव ।।१५।।

~~~~~इति~~~~                                                                                                                                                             📝 स्रोत सामग्री : स्रोत्र रत्नावली                                                        

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