७८. चण्डी : दुर्गासप्तसती अथ सप्तश्लोकी दुर्गा

चण्डी : दुर्गासप्तसती अथ सप्तश्लोकी दुर्गा     

✍️ वसन्तराज अधिकारी
               स्वनिवास : घोराही उपमहानगरपालिका, दाङ                                                                                                              शिव उवाच -

देवि त्वं भक्तसुलभे सर्वकार्यविधायिनी ।
कलौ हि कार्यसिध्दयर्थमुपायं ब्रुही यत्नत: ।।

देव्युवाच -
श्रुणु देव प्रबक्ष्यामी कलौ सर्वेष्टसाधनम ।
मया तवैव स्नेहानाप्यम्बास्तुती: प्रकाश्यते ।।                                     
ॐ अस्य श्रीदुर्गासप्तश्लोकीस्तोत्रमन्त्रस्री नारायण ऋषि:, अनुष्टुप छ्न्द:, श्रीमहाकालीमहालक्ष्मीमहासरस्वत्यो देवता:, श्रीदुर्गापीत्यर्थ सप्तश्लोकीदुर्गापाठे बिनियोग :।

ॐ ज्ञानिनामपि चेतांसि देवी भगवती हि सा ।
बलादाकृष्य मोहाय महामाया प्रयच्छती ।।१।।
दुर्गे स्मृता हरसी भीतिमशेषजन्तो :
स्वस्थ्यै : स्मृता मतिमतीव शुभां ददासी ।
दारिद्र्य्दु:खभयहारिणी का त्वदन्या
सर्वोपकरणाय सदार्दचित्ता ।।२।।
सर्वमङ्गलमङ्गल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बके गौरी नारायणि नमोस्तुते ।।३।।
शरणागतदीनार्तपरित्राणपराय्णे ।
सर्वस्यार्तिहरे देवि नारायणि नमोस्तुते ।।४।।
सर्वस्वरुपे सर्वेशे सर्वशक्तिसमन्विते ।
भयेस्राही नो देवि दुर्गे देवि नमोस्तु ते ।।५।।
रोगानशेषानपिहंसी तुष्टा रुष्टा तु कामान सकलानभिष्टान ।
त्वामाशृता ह्याश्रयातां प्रयान्ति ।।६।।
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरि ।
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्बैरिविनाशनम ।।७।।
इति श्री सप्तश्लोकी दुर्गा सम्पुर्णम शुुभम् ।।                                               
नवरात्रसाधक : वसन्त राज अधिकारी, मिति २०७२/७/२ सोमबार, स्थान : स्वनिवास, घोराही-२, सरस्वतीटोल, पनौरा, जिल्ला दाङ, लुम्बिनी प्रदेश, राप्ती अन्चल, नेपाल ।

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