८५. अष्टाबक्र गीता : एक उदाहरण ✍️ ओशो रजनिश

 अष्टाबक्र गीता : एक उदाहरण 

✍️ ओशो रजनिश      

🙏 Me with Lord Ganesh Statute 

अष्टाबक्र गीता यैसी गुढ ज्ञान है जिसके समान कोही नहि राजर्षी जनक यहि ज्ञानसे दिक्षीत था । राजर्षि जनक मुक्त पुरूष था । यैसा अवसर सय वा लाखौ लोग मे किसिको सौभाग्य मिल जाता । ये आकस्मिक है । 


गुरू वा कोही ज्ञान आवश्यक नहि पडता । मैने एक ऐसी परिघटना सुना है बंगालमे एक राजा बावु नामका एक प्रौढ आदमि था । व रिटायर्ड सरकारी हेर्ड क्लर्क था । सदाचार वा साद जीवन व्यतित करता था । करिव साठ सालका हुवा करता था । एक सुबह मोर्निङ वाक मे घुम रहा था । एक गाँव के घर से आवाज आया –“राजा बावु उठो” शायद उस महिलाने उसका पति, देवर, बेटा किसिको सुबह जगा रहि थि । सडकमे चलनेवाला राजा बावु तो उसको पता नही लेंकिन तीर लाग गई ये जन्मो जन्मोन्तरका सुकर्मका परिणाम हुवा ये आवाज सुनकर राजा बावु घरवार सव छोडकर जंगलमे चल गया । 


घर मे बहुत खोजतलाश हुवा जव घरका आदमीने जंगलमे राजा बावु मिला तो व हँस रहा था । उनको घर चलनेके लिए घरवालो ने कहा तो रावा बावु हँसकर कहने लगा । सुवह हो गया । धरती मुस्कराते उठी । चहुँवर साफ दिखाई पडता है । अव राजा बावु जाग गए । राजा बावुने सव कहानी सुनुवाई तव व साधु हो गए । 


न ता व महिला स्वयं ब्रम्हज्ञानी था । उसने तो अपने राजाबावु को उठा रहि थि । चमत्कार हो गया । यैसा आकस्मिकता होता है । जव भेधा शक्ति जाग उठ्ता है । मेधा शक्ति प्रगाढ हो जाता है । फल पक गया । हो जाए तो हो गया । 


 ✍️ आचार्य ओशो रजनिश “अष्टाबक्र गीता ज्ञान," आफ्नै राष्ट्रसेवक कन्तुर—२ वाट साभार ।

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